Saturday 30 July 2016

हाथी का गाना


नन्हें हाथी को लगतीं
प्यारी वर्षा की बूँदें,
वर्षा में रहता खड़ा  
अपनी दोनों आँखें मूंदे.

धीरे-धीरे बहता जब
सिर पर वर्षा का पानी,
नन्हें हाथी को होती
तब अपने पर ही हैरानी.

वर्षा में खूब भीगना
उस को लगता अच्छा,
भीगते-भीगते गाने लगता
कोई गाना अच्छा.

   नन्हा हाथी गाता जब   
कोई गीत पुराना,
  सब चिल्लाने लगते उस पर  
‘फिर वही बेसुरा गाना’

फट्टे ढोल सी है
बेचारे नन्हें की आवाज़,
सुर ताल का तो उसको
ज़रा नहीं अंदाज़.

चारों ओर से आते सब
दौड़ कर उसकी ओर,
‘इतना बेसुरा गाना है
तो गाओ कहीं ओर’.

 मुंह लटकाए नन्हा हाथी
आया नानी के पास,
नानी मग्न थी खाने में
हरी-हरी नर्म घास.

“तो आज फिर तुम ने
कोई गाना गाया,
पर तुम्हारा गीत  
किसी को न भाया.

बच्चे, अब तुम्हारे पास
   हैं दो ही उपाये,  
या मन की सुनो या
     सुनो औरों की राय.    

 मेरी मानो तो वही करो
जो तुम्हारा दिल चाहे,
लोगों को तो शायद
कोई बात पसंद न आये.

लोगों की बातों में
कभी न तुम आना,
जब भी मन चाहे 
मस्ती से तुम गाना”.

नन्हा हाथी झूम रहा है
वर्षा की बौछारों में,
उसका गाना गूँज रहा है
हर वनवासी के कानों में.
©आइ बी अरोड़ा 



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