Wednesday 23 March 2016

“नटखट नट्टू” (अंतिम भाग)
सब भैंसें गुस्से से शेर की ओर दौड़ीं. अब शेर का माथा ठनका. वह समझ गया कि भैंसों पर दहाड़ कर उसने भूल कर दी थी.
सामने गुस्से से भरी भैंसें थीं और पीछे मगरमच्छों से भरी नदी. उसे तैरना आता था, पर मगरमच्छों के कारण नदी के पार जाना आसान न था. मगरमच्छों ने एक साथ हमला कर दिया तो जान भी जा सकती थी.  
एक तरफ भैंसें थीं और दूसरी ओर मगरमच्छ. ऐसी स्थिति में भैंसों का सामना करने के अतिरिक्त उसके पास कोई रास्ता न था. शेर बहादुर था पर घमंडी भी था. उसने भैंसों से लड़ने का मन बना लिया.
नट्टू खरगोश नदी किनारे ही घास, पत्तियाँ खा रहा था. उसने भी शेर की दहाड़ सुनी थी. उसने भैसों के झुण्ड को शेर की ओर जाते देख लिया था. वह एक पल में समझ गया कि शेर पर आफत आने वाली थी.
‘श्रीमान, अब आप एक बड़ी मुसीबत में फंस गये हैं. आपको इस मुसीबत से निकालने का कोई उपाये तो मुझे करना ही पड़ेगा, आपको वचन जो दे रखा है मैंने,’ नट्टू ने अपने आप से कहा.
नट्टू जानता था कि उसे तुरंत ही कुछ करना होगा. शेर शक्तिशाली था पर इतनी सारी भैंसों का अकेले सामना नहीं कर सकता था. अगर उसे देर तक भैंसों से लड़ना पड़ा तो उसकी जान भी जा सकती थी.
नट्टू ने नदी के किनारे रेत पर लेटे हुए मगरमच्छों को देखा. सब के सब आँखें बंद किये मज़े से धूप में सुस्ता रहे थे. मगरमच्छों को देख कर नट्टू के मन एक योजना आई.
नट्टू मगरमच्छों के निकट आया और चिल्ला कर बोला, ‘तुम सब के सब तो छिपकलियों की तरह सुस्त और मूर्ख हो. उठो सब यहाँ से और जाकर नदी में डुबकियां लगाओ. अब मैं यहाँ धूप में लेट कर थोड़ा आराम करूंगा. उठो, भागो.’
नट्टू की बात सुन कर मगरमच्छ दंग रह गये. जंगल का कोई भी प्राणी उनसे इस तरह बात नहीं करता था. सब जानते थे कि मगरमच्छों को छिपकली शब्द से ही चिढ़ थी. अगर कोई उन्हें  छिपकली कह कर बुलाता तो वह अपना आपा खो बैठते थे. गुस्से से वह कांपने लगते थे. और सब मिलकर चिढ़ाने वाले पर टूट पड़ते थे.
‘मित्रो, लगता है इस मूर्ख खरगोश को आजतक किसी न यह नहीं बताया कि बढ़ों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिये. क्यों न आज हम इसे थोड़ी शिक्षा दें,’ एक मगरमच्छ ने कहा.
‘नहीं भाई, इस दुष्ट को शिक्षा देने की कोई आवश्यकता नहीं है. इसे तो पकड़ कर खा जाना चाहिये,’ दूसरे मगरमच्छ ने कहा.
‘पकड़ो इस बदमाश को,’ सब एक साथ चिल्लाये. सब एक साथ उस पर झपटे.
नट्टू भाग खड़ा हुआ. पर वह वैसे न भागा जैसे वह भागा करता था, आंधी सामान तेज़. वह भागा पर धीरे-धीरे भागा. उसने ऐसे दिखाया कि जैसे उसकी एक टाँग में चोट लगी थी. मगरमच्छों को लगा कि चोटिल खरगोश तेज़ न भाग पायेगा. अगर वह उसका पीछा करते रहे तो उसे पकड़ लेंगे.
नट्टू धीरे-धीरे भागता रहा और रुक-रुक कर मगरमच्छों को चिढ़ाता भी रहा. गुस्से से भरे मगरमच्छ उसके पीछे दौड़ते रहे.  नट्टू चालाकी के साथ उन्हें उस ओर ले आया जिस ओर भैंसों का झुण्ड था.
शेर की ओर बढ़ती भैंसों को अचानक मगरमच्छों की गंध आई. वह रुक गईं. उन्होंने देखा कि कई मगरमच्छ गुस्से से भरे उनकी ओर आ रहे थे. नट्टू अब झाड़ियों में छिप गया. भैंसों ने समझा कि सभी मगरमच्छ उन पर हमला करने आ रहे थे.
भैंसें असमंजस में पड़ गईं. शेर की ओर से उनका ध्यान हट गया. वह इस नई मुसीबत से बचने का उपाये सोचने लगीं. भैंसों को देख कर मगरमच्छ भी चौकने हो गये. झुण्ड बहुत बड़ा था और मगरमच्छ नदी से बहुत दूर आ चुके थे. ऐसी खुली जगह में भैंसों से लड़ना आसान न था. पर वह डरे नहीं और भैंसों की ओर देखते हुए डरावनी आवाजें निकालने लगे.
भैंसों का किसी से भी लड़ने का मन न था. वह तो मज़े से धीमे-धीमे चलते दक्षिण की ओर जा रहीं थीं. बस शेर की दहाड़ सुन कर थोड़ा गुस्सा हो गईं थीं.
भैंसें न शेर से लड़ीं, न मगरमच्छों से. सब अपने रास्ते चल दीं. मगरमच्छ भी झटपट नदी की ओर वापस चल दिए. शेर झाड़ियों में छिपा सब देख रहा था. झुण्ड के जाते ही उसने भी राहत की सांस ली.
‘श्रीमान, क्या मेरी योजना सफल रही?’ नट्टू ने पूछा. उसका प्रश्न सुनकर शेर को आश्चर्य हुआ. उसे पता ही न चला था कि नट्टू पास ही झाड़ियों में छिपा बैठा था. पर वह खरगोश की सूझबूझ से खूब प्रभावित हुआ था.
‘तुम्हारी चाल तो पूरी तरह सफल रही.’ शेर ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा.
‘तो अब आप क्या सोचते हैं? क्या मुझ जैसा छोटा प्राणी आपके किसी काम आ सकता है या नहीं?’ नट्टू ने मुस्कुरा कर पूछा.
‘आज एक बात मैं बड़े विश्वास के साथ कह सकता हूँ, इस संसार में सबसे शक्तिशाली प्राणी को भी मित्रों की आवश्यकता पड़ सकती है. इसलिये सच्चा शक्तिशाली वही होता है जिसके कई मित्र होते हैं. आओ, आज से हम दोनों मित्र बन जाएँ.’
शेर और नटखट खरगोश मित्र बन गये.

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