Wednesday 10 February 2016

बंदर की शैतानी
इक बंदर को सूझी शैतानी
किसी की पूंछ काटने की ठानी
देखा उस धूर्त ने चारों ओर
सब पूँछों पर किया कुछ गौर
एक पूंछ लगी कुछ मोटी
एक पूंछ लगी कुछ छोटी
एक पूंछ थी बहुत ही तगड़ी
एक पूंछ थी थोड़ी अकड़ी
पूंछ लोमड़ी की बन्दर को भायी
वही काटने की तरकीब बनाई
घर अपने लोमड़ी को बुलाया
उसको मछली भात खिलाया
पेट भरा तो लोमड़ी सुस्ताई
लेट गई वह ले नर्म रज़ाई
धूर्त बन्दर भी आ लेटा पास  
हाथ में  था इक चाक़ू ख़ास

हौले से उसने पूंछ को पकड़ा
मजबूती से उस पूंछ को जकड़ा
वार किया फिर इक चाक़ू से 
चीख निकली अपने ही मुंह से   
शैतानी का उसे मिला सबक था
पूंछ अपनी को ही काट दिया था.

© आइ बी अरोड़ा 

No comments:

Post a Comment