Sunday 28 February 2016

डर तो लगा(अंतिम भाग)
‘सर, भूल हो गई. माफ़ कर दें. मेरे मित्र की माँ बहुत बीमार है. हम उसे देखने अस्पताल जा रहे हैं. बस परेशानी में ध्यान ही न रहा कि कार की रफ्तार इतनी तेज़ हो गई है.’ सियार ने कहा.
‘सर, हम ऐसी गलती फिर कभी न करेंगे. हमेशा ट्रैफिक नियमों का पालन करेंगे. इस बार क्षमा कर दें और हमें जाने दें. हमें अभी अस्पताल पहुंचना है,’ लोमड़ ने भी गिड़गिड़ा कर कहा. 
‘तुम्हारी कार की तलाशी लेनी होगी. चलो बाहर आओ.’ इंस्पेक्टर ने कहा.
‘क्यों तलाशी लेनी होगी? हम कोई अपराधी हैं क्या?’ लोमड़ ने कहा.
‘तुम लोगों ने वेश बदल रखा है पर मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो. अब मुझे यह देखना है कि तुम दोनों ने कोई गड़बड़ तो नहीं की.’
इतना कह कर इंस्पेक्टर ने कार के भीतर झांका.
‘इस कम्बल के नीचे कौन है?’ इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज़ में पूछा.
‘मेरा बेटा है, सो रहा है,’ लोमड़ ने रिंकू की गर्दन में चाक़ू की नोक चुभाते हुए कहा. रिंकू डर से थर-थर कांपने लगा.
‘यह इस तरह कांप क्यों रहा है?’ इंस्पेक्टर ने पूछा.
‘वो बीमार है,’ लोमड़ ने बिना सोचे समझे कह दिया.
‘सियार कह रहा था कि तुम्हारी माँ बीमार है, तुम कह रहे  हो कि तुम्हारा बेटा बीमार है. यह चक्कर क्या है?’ इंस्पेक्टर ने कहा और झटक कर कम्बल खींच दिया.
कम्बल के नीचे रिंकू लेटा था. लोमड़ का चाक़ू उसकी गर्दन पर टिका था. इंस्पेक्टर ने अपनी पिस्तौल लोमड़ के सिर पर तान दी और गुस्से से कहा, ‘अपना चाक़ू कार से बाहर फैंक दो और बाहर आ जाओ, अभी, नहीं तो गोली मार दूँगा.’
लोमड़ सहम गया. उसने चाक़ू दूर फैंक दिया. दोनों बाहर आ गये. एक सिपाही ने सियार और लोमड़ को हथकड़ी लगा दी. रिंकू भी भाग कर कार से बाहर आ गया. इंस्पेक्टर ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, ‘ तुम ठीक तो हो न? फोन करते समय तुम्हें डर तो न लगा?’
रिंकू कुछ कहने ही वाला था कि लोमड़ बोल पड़ा, ‘तुम ने पुलिस को फोन किया था? कब? कैसे?’
रिंकू ने जेब से एक सेलफोन निकाल कर दिखाया और बोला, ‘आज पापा ने अपना फोन मुझे दे दिया था. इसी से मैंने पुलिस को फोन किया था.’
फिर उसने इंस्पेक्टर से कहा, ‘इस बदमाश ने मुझे धोखे से बेहोश कर दिया था. मुझे जब होश आया तो मैं समझ गया कि मैं फंस गया हूँ. परन्तु मैंने साहस से काम लिया और चुपचाप कार में लेटा रहा. इन लोगों ने भूल से न तो मेरे हाथ पाँव बांधे और न ही मेरी तलाशी ली. बस मैं पुलिस को फोन करने का अवसर ढूँढने लगा. इनकी कार जब ट्रैफिक जाम में फंस गई तो यह घबरा गये. यह जाम से निकलने का रास्ता ढूँढने लगे और मुझे फोन करने का अवसर मिल गया. फोन करते समय मुझे थोड़ा डर तो लगा था परन्तु मैं जानता था कि मुझे थोड़ा जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा.’
‘तुम एक बहादुर बच्चे हो. सब बच्चों को तुम्हारी तरह साहसी होना चाहिये.’
लोमड़ और सियार फिर जेल पहुँच गये.   

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