Friday 3 July 2015

‘मल्ली की मित्र’ 




एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था. उसकी एक बेटी थी. नाम था मल्लिका. प्यार से पिता उसे मल्ली बुलाते थे. मल्ली की माँ उसके जन्म के समय चल बसी थी.

लकड़हारा सुबह सवेरे ही जंगल चला जाता था. जाने से पहले अपने लिए और मल्ली के लिए थोड़ा खाना बना लेता था. फिर मल्ली से कहता, “मल्ली, कहीं बाहर न जाना, बाहर गई तो घर का रास्ता भूल जाओगी. मैंने खाना बना कर रख दिया है. जब भूख लगे तो खा लेना”’

इतना कह लकड़हारा चला जाता. जंगल में सूखे पेड़ ढ़ूंढ़ कर लकड़ी काट लेता. उस लकड़ी को गाँव के हाट में बेच देता. शाम होने से पहले घर लौट आता. हर दिन वह अपनी प्यारी बेटी के लिए कुछ न कुछ लेकर आता, कभी को खिलौना, कभी मिठाई, या कोई गुड़िया.

मल्ली सारा दिन घर में अकेले ही रहती थी. वह छोटी थी पर घर की कई काम अच्छे से कर लेती थी. घर को सदा साफ़-सुथरा रखती थी.

परन्तु कभी-कभी वह उदास हो जाती. उसका मन करता था कि उसका भी कोई भाई होता या एक छोटी-सी बहन होती. उसका तो कोई मित्र भी न था.

एक दिन मल्ली घर का सारा काम करके थक गई. थक कर वह धरती पर ही लेट गई और सो गयी.

उसने एक सपना देखा. देखा खिड़की की पास एक सुंदर लड़की खड़ी है. वह गुड़िया ही लग रही थी.  

“तुम कौन हो?” मल्ली ने पूछा.

“मैं नन्ही परी हूँ.”

“नन्ही परी? यह कैसा नाम है.”

“परियों के नाम ऐसे ही होते हैं.”

“तुम एक परी हो? सच में? क्या मैं तुम्हें छू कर देखूं?”

“मुझे छूना मत, अगर तुमने छू लिया तो मैं पत्थर की बन जाउंगी.”

“अरे ऐसा नहीं होता,” इतना कह मल्ली ने खिड़की से अपना हाथ बाहर निकाला और नन्ही परी को छू लिया. एक ही पल में परी पत्थर की बन गई.  मल्ली  डर कर चिल्लाई. चिल्लाते ही वह नींद से जाग गई.

उसने मन ही मन कहा, “मैं तो सपना देख रही थी.”

वह खिलखिला कर हंस दी. तभी उसको किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी. उसने खिड़की की ओर देखा. खिड़की के बाहर एक लड़की खड़ी थी, लड़की वैसी ही थी जैसी उसने सपने में देखी थी. वह रो रही थी.

“तुम रो क्यों रही हो?” मल्ली ने पूछा.

“मैं पत्थर की बन गई हूँ.”

“कैसे?” मल्ली ने डरते-डरते पूछा.

“तुम ने मुझे छू लिया और मैं पत्थर की बन गई.”

“मैंने तुम्हें कब छुआ?”

“तुमने सपने में छुआ था. किसी परी को कोई लड़की अगर सपने में भी छू ले तो वह परी पत्थर की बन जाती है.”

“नन्ही परी, तुम यहाँ क्यों आई थी?”

“परियों की रानी ने मुझे भेजा था. तुम्हारा कोई मित्र नहीं है, तुम सारा दिन घर में अकेली रहती हो. इसलिये परी रानी ने कहा, ‘नन्ही परी जाओ, मल्ली से मित्रता करो. उसके संग खेलो, उसका दिल बहलाओ.’ और मैं तुमसे मिलने आ गई.”

“पर तुम मेरे सपने में क्यों आई?” मल्ली को अपने पर गुस्सा आ रहा था. उसके कारण नन्ही परी पत्थर की बन गई थी. वह बेचारी तो उससे मित्रता करने आई थी.

“जब मैं आई तो तुम मज़े से सो रही थी. मैंने सोचा कि तुम्हारे जागने की प्रतीक्षा करूंगी. फिर मन में आया कि तुम्हारे सपने में आकर सपने में ही तुम से बातें करूंगी, तुम संग खेलूंगी.”

परी की बात सुन, मल्ली बहुत दुःखी हुई. उसने कहा, “तुम तो परी हो, जादू से अपने को ठीक कर लो.”

“अब मैं कुछ नहीं कर सकती. पर तुम मेरी सहायता कर सकती हो. तुम परी लोक जाओ और परी रानी से कहो की वह मुझे ठीक कर दें.”

“मैं परी लोक कैसे जाऊं?”

“तुम सूर्य किरणों के रथ पर बैठ कर परी लोक जा सकती हो. मेरी जादू की छड़ी ले कर इसे तीन बार हवा में घुमाओ और मन ही मन कहो, ‘हे सूर्य किरणों के रथ धरती पर आओ, मुझे परी रानी के पास जाना है.’ तुम्हारे ऐसा करते ही वह रथ तुम्हारे सामने होगा.”

मल्ली ने वैसा ही किया. और एक सुंदर रथ उसके सामने था. बच्चों आप तो जानते ही हो कि सूर्य का प्रकाश दिखाई तो देता है सफ़ेद पर वह सात रंगों की किरणों से बना होता है.वह सात रंग हैं लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी,  नीला, और बैंगनी. उन्हीं  सात रगों की किरणों से वह रथ बना था.

मल्ली रथ पर बैठ गई और एक ही पल में रथ धरती से उठ आकाश में पहुँच गया. धरती पर कई लोगों ने आकाश में एक सुंदर इन्द्रधनुष देखा जो धरती से उठ आकाश को छू रहा था.

मल्ली परी लोक पहुँच गई. परी रानी ने कहा, “तुम आ गई मल्ली?”

“आप ने कैसे जाना कि मैं आ रही थी?”

“यहाँ से मैं सब देख सकती हूँ. वह देखो तुम्हारे पिता वहां जंगल में लकड़ी काट रहे. वह रहा तुम्हारा घर, और वह है नन्ही परी जो पत्थर की बन गई है.”

मल्ली ने देख कि परी लोक से सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा था. वह तो लोगों की बातें भी सुन पा रही थी. एक विद्यालय में अध्यापक बच्चों को पढ़ा रहे थे. वह उनकी सारी बातें सुन पा रही थी.

“परी रानी आप जल्दी से उस नन्ही परी को ठीक कर दो. वह मेरी मित्र बनने आई थी. मैंने ही भूल से उसे छू लिया और वह पत्थर की बन गई.”

“मल्ली, मैं सब कुछ कर सकती हूँ पर जो परी पत्थर बन जाती है उसकी सहायता नहीं कर सकती. पर तुम अगर हेम पर्वत पार जाकर हेमपुष्प ले लाओ तो वह ठीक हो सकती है.”

“मैं हेम पर्वत कैसे जाऊं?”

“सूर्य किरणों के रथ पर तुम कहीं भी जा सकती हो.”

मल्ली झट से रथ में बैठ गई. एक ही पल में वह हेम पर्वत पहुँच गई. वहां जगह-जगह हेमपुष्प खिले हुए थे. पर जैसे ही वह एक फूल तोड़ने लगी अचानक कई सैनिक प्रकट हो गए. उन सिपाहियों ने उसे घेर लिया.

“मल्ली, तुम यह फूल नहीं तोड़ सकती,” एक सिपाही ने कहा.

“तुम्हें मेरा नाम कैसे पता चला?”

“हम सब जानते हैं, हम यह भी जानते हैं कि तुम एक बुरी लड़की हो. तुमने एक परी को छू कर पत्थर का बना दिया है.”

“नहीं, मैं बुरी लड़की नहीं हूँ, मैंने नन्ही परी को भूल से छू दिया था. और अब मैं ही उसे ठीक करूंगी.”

“अगर तुमने एक भी फूल तोडा तो हम तुम्हें कैद कर लेंगे.”

मल्ली डर गई. सोचने लगी कि अगर इन सिपाहियों ने से कैद कर लिया तो वह घर न जा पायेगी. उसके पिता उसे घर पर न देख बहुत दुःखी होंगे. उसके पिता उसे बहुत प्यार करते थे.

फिर मल्ली ने सोचा कि अगर वह फूल ले कर न गई तो नन्ही परी कभी ठीक न होगी, वह पत्थर की बनी रहेगी. उसने सिपाहियों से कहा, “मुझे नन्ही परी की सहायता करनी ही है.”

इतना कह उसने एक फूल तोड़ लिया. सब सिपाही दंग रह गये. एक सिपाही ने कहा, “अरे, इस ने तो एक फूल तोड़ लिया है. अब क्या करें.’

दूसरे सिपाही ने कहा, “इसे सेनापति के पास ले चलते हैं.”

सिपाही मल्ली को पकड़ कर अपने सेनापति के पास ले आये.

“मल्ली, सिपाही ने तुम को मना किया था, फिर तुमने फूल क्यों तोड़ा?” सेनापति ने पूछा.

“मुझे नन्ही परी की सहायता करनी ही है. आप चाहें तो मुझे दंड दे सकते हैं पर मैं नन्हीं पारी की सहायता अवश्य करूंगी,” मल्ली ने बड़े विश्वास के साथ कहा.

सेनापति उसका उत्तर सुन कर मुस्कुरा दिया. बोला, “तुम्हारा साहस और विश्वास देख कर अच्छा लगा. अगर किसी की सहायता करने की बात मन में आये तो फिर किसी भी कठिनाई से डरना नहीं चाहिये. तुम यह फूल ले जाओ.”

मल्ली सूर्य किरणों के रथ पर बैठ धरती पर आई, नन्ही परी अभी भी खिड़की के पास खड़ी थी, वह पत्थर की मूर्ति जो बन गयी थी.

मल्ली को देखते ही नन्ही परी ने कहा, “क्या परी रानी से तुम मिली थी? क्या वो मुझे ठीक कर देंगी?”

मल्ली ने कुछ न कहा और जैसा परी रानी ने कहा था वैसा ही करने लगी. उसने परी के सर को, फिर चेहरे को, फिर हाथ और पाँव को हेमपुष्प से छुआ. नन्ही परी उसी पल ठीक हो गई. वह प्रसन्ता से खिल उठी. सूर्य किरणों के रथ पर बैठ दोनों परी लोक आ गईं.

नन्ही परी को देख रानी बहुत खुश हुई. उसने कहा, “तुम दोनों अच्छे मित्र हो. नन्ही परी, जब भी तुम्हारा मन करे तुम मल्ली के साथ खेलने की लिए इस के घर जा सकती हो. मल्ली, तुम जब भी परी लोक आना चाहो इस रथ पर बैठ आ सकती हो.”

जब भी मल्ली का मन करता वह परी लोक चली जाती. सूर्य किरणों के रथ पर बैठ वह पल भर में ही परी लोक पहुँच जाती.

जिस दिन मल्ली परीलोक जाती उस दिन सबको आकाश में एक सुंदर इन्द्रधनुष दिखाई देता.

©आइ बी अरोड़ा 

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