Sunday 9 November 2014

बंदर की शैतानी
इक बंदर को सूझी शैतानी
किसी की पूंछ काटने की ठानी
देखा उसने चारों ओर
सब पूँछों पर किया कुछ गौर
एक पूंछ लगी कुछ मोटी
एक पूंछ लगी कुछ छोटी
एक पूंछ थी बहुत ही तगड़ी
एक पूंछ थी बिल्कुल कड़की
पूंछ लोमड़ी की मन भायी
पूंछ काटने की तरकीब बनाई
घर अपने लोमड़ी को बुलाया
उसको मछली भात खिलाया
भात खा लोमड़ी सुस्ताई
लेट गई वह ले नर्म रज़ाई
बन्दर भी आकर लेटा पास  
पूंछ काटने की लिए था आस.
हौले से इक पूंछ को पकड़ा
मजबूती से उस पूंछ को जकड़ा   
पर जैसे ही कैंची उसने चलाई
मुंह से अपने चीख निकल आई
 शैतानी का उसे मिला सबक था
पूंछ अपनी को ही काट दिया था.
                                                       © आई बी अरोड़ा 

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