Wednesday 8 October 2014

मोतियों की माला
बिरजू और सोमू मित्र थे. दोनों एक सेठ के यहाँ नौकरी करते थे. बिरजू मेहनती था. लग्न के साथ अपना काम करता था. फिजूलखर्ची बिल्कुल न करता था. अपनी कमाई से वह बहुत पैसे बचा लेता था. हर माह गाँव आकर अपनी पत्नी को पैसे दिया करता था. अपनी बेटी, लक्ष्मी, के लिए कोई न कोई उपहार भी लाया करता था. उसका परिवार बहुत सुखी था.
सोमू भी मेहनती था. पर वह बुरी संगत में पड़ गया था. मौज-मस्ती करना उसे अच्छा लगता था. अपनी कमाई का बड़ा भाग वह अपनी मौज-मस्ती पर गंवा बैठता था. पत्नी और बेटे से मिलने कभी-कभार ही जाया करता था. इस कारण उसकी पत्नी और बेटा उदास और दुःखी रहते थे.
एक दिन सोमू के पड़ोसी ने गाँव से आकर बताया कि उसका बेटा बीमार है. उसकी पत्नी ने तुरंत घर बुलाया है. परन्तु सोमू घर जाने को तैयार न हुआ. बिरजू को इस बात का पता चला तो उसने सोमू को समझाया, “मैं कल गाँव जा रहा हूँ. तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा. वैसे भी तुम तीन-चार माह से घर नहीं गये. अब तो बेटा भी बीमार है.”
सोमू आना-कानी करने लगा पर बिरजू ने उसकी एक न सुनी और अपने साथ उसे गाँव ले गया.
इधर उधर की बातें करते दोनों गाँव की ओर चल दिए. बातों ही बातों में सोमू जान गया कि बिरजू अपने साथ पांच हज़ार रूपए ले जा रहा था. सोमू के पास सिर्फ एक सौ रूपए थे. परन्तु उसने कहा, “मैं भी पांच रूपए ले जा रहा हूँ. इस बार मैंने कोई फिजूलखर्ची नहीं की.”
बिरजू को उसकी बात का विश्वास न हुआ, पर वह चुप रहा. वह जानता था कि सोमू सच नहीं बोल रहा था.
रास्ते में एक जगह एक कूआँ था. वहां पहुँचने पर सोमू ने कहा, “ज़रा रुको, मैं थोड़ा पानी पी लूँ. बहुत प्यास लगी है.”
सोमू कूँये से पानी निकालने लगा. तभी उसने जानबूझ कर अपनी पोटली कूँये में गिरा दी. फिर वह रोने चिल्लाने लगा, “अरे मेरी पोटली कूँये में गिर गई. मेरे पैसे उसी पोटली में थे. अब मैं अपनी पत्नी को क्या दूंगा? अब मैं अपने बेटे का इलाज कैसे कराऊंगा?”
सोमू की सूरत देख बिरजू घबरा गया. उसने कहा, “चुप हो जाओ और धीरज रखो. मैं तुम्हारी पोटली निकाल कर लाऊँगा.”
इतना कह बिरजू कूँये में उतर गया. सोमू यही चाहता था. उसने झटपट बिरजू के कपड़ों और पोटली की तलाशी ली. पोटली की अंदर एक छोटी सी थैली थी जिसमें उसके रूपये थे. सोमू ने वह थैली निकल कर छिपा ली.
बिरजू कूँये से सोमू की पोटली निकाल लाया. सोमू खुशी से उछल पड़ा. उसने बिरजू को गले लगा लिया और बार-बार धन्यवाद दिया.
बिरजू घर पहुंचा तो उसकी बेटी भागती हुई आई और बोली, “इस बार मेरे लिए क्या लाये हो?”
“इस बार मोतियों की माला लाया हूँ. अपनी छोटी सी गुड़िया के लिये छोटी सी माला.” इतना कह बिरजू ने अपनी पोटली खोली. पर पोटली में न तो रुपये थे, न ही मोतियों की माला. वह बहुत हैरान हुआ. पर उसने अपनी पत्नी से कुछ न कहा.

उधर घर पहुँच कर सोमू ने चुराये हुए रुपये अपनी पत्नी, राधा, को दिए और कहा, “पूरे पांच हज़ार रुपये हैं. संभाल कर रखना. इस बार मैंने बहुत मेहनत की. इस कारण सेठ जी ने प्रसन्न हो कर इतने रुपये दिए.”

राधा ने जब रुपयों की थैली खोली तो उसमें उसे एक मोतियों की माला दिखाई दी. माला देख कर उसे आश्चर्य हुआ.
“यह माला किस के लिये लाये हो?” उसने सोमू से पूछा.
“कौन सी माला?”
“अरे, वही माला जो रुपयों की थैली में है?”
“मैं भूल ही गया था. वह मैं तुम्हारे लिए लाया हूँ.”
“मेरे लिए? इतनी छोटी माला? इतनी छोटी माला तो कोई छोटी बच्ची ही पहन सकती है.”
सोमू मन ही मन पछताया की उसने थैली की ठीक से जांच क्यों न की. वह डर गया कि कहीं राधा को कुछ संदेह न हो जाये और उसकी चोरी पकड़ी जाये. परन्तु पांच हज़ार रूपए पाकर राधा इतनी प्रसन्न थी कि उसने किसी बात की ओर ध्यान ही न दिया. रुपये उसने संभाल कर रख दिये और बिरजू के घर की ओर चल दी. बिरजू की पत्नी उसकी पक्की सहेली थी.
बिरजू के घर में उसकी बेटी, लक्ष्मी, रो रही थी.
“क्या हुआ हमारी लाडली बेटी को?” लक्ष्मी को पुचकारते हुए राधा ने पूछा. वह भी लक्ष्मी से बहुत प्यार करती थी.
“बापू मेरे लिए मोतियों की माला नहीं लाये. मुझे मोतियों की माला चाहिये.”
“अरे, तेरे बापू माला नहीं लाये तो क्या हुआ, मैं तुम्हें मोतियों की माला दूंगी,” राधा ने कहा.
लक्ष्मी को साथ ले राधा अपने घर आई. दोनों घर आमने-सामने ही थे. जो माला उसे रुपयों की थैली में मिली थी वह माला उसने लक्ष्मी को पहना दी. लक्ष्मी की खुशी का ठिकाना न रहा.
“मैं यह माला बापू को दिखाऊं?” उसने राधा से पूछा.
“हां, अभी जाकर दिखाओ,” राधा ने हंसते हुए कहा.
लक्ष्मी भागकर अपने घर आई. उसने अपने पिता को माला दिखाई. माला देखते ही बिरजू समझ गया कि सोमू ने ही उसकी रुपयों से भरी थैली चुराई थी.
“यह माला तो बहुत ही सुंदर है. क्या तुमने माला के लिए सोमू चाचा को धन्यवाद कहा?” बिरजू ने प्यार से बेटी के सर पर हाथ फेरते हुए पूछा.
“वो तो मैं भूल ही गई.”
लक्ष्मी को साथ लेकर बिरजू सोमू के घर आया. पिता के संकेत पर उसने सोमू से कहा, “चाचा, इस माला के लिए धन्यवाद. यह आप मेरे लिए ही लाये थे न?”  
सोमू की बोलती बंद हो गई. वह समझ गया कि बिरजू ने उसकी चोरी पकड़ ली है. वह डर गया कि कहीं बिरजू उसकी पत्नी और बेटे के सामने उसकी पोल न खोल दी. बिरजू भी सोमू के डर को भांप गया. उसने मुस्कराते हुए बिरजू से कहा, “ अरे, तुम ने यह माला कब खरीदी? कल तो तुम इतनी हड़बड़ाहट में थे? देखो, लक्ष्मी इसे पहन कर कितनी खुश है. मेरी ओर से भी तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद.”
इतना कह कर बिरजू लौट गया. सोमू अपने आप में बहुत लज्जित हुआ. उसे अपनी गलती का अहसास हुआ. बिरजू के रुपयों की थैली लेकर वह उसी समय बिरजू के घर आया. थैली लौटा कर उसने बिरजू से कहा, “मैं तुम्हारा आभारी हूँ. तुमने राधा के सामने कुछ न कहा. मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अब मैं कोई गलत काम न करूंगा. मैं राधा को भी सब सच-सच बता दूंगा.”
“नहीं, ऐसा मत करना. राधा को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है,” बिरजू ने कहा.
“नहीं मित्र, अगर मैंने यह बात राधा से छिपा ली तो शायद मैं फिर से कोई भूल कर बैठूं.”
उसने राधा को सब सच-सच बता दिया. राधा ने कहा, “तुमने बिरजू की पोटली चुरा कर बहुत गलत किया. पर मैं प्रसन्न हूँ कि तुम्हें अपनी भूल का अहसास हुआ है और तुमने वचन दिया है की फिर ऐसा न करोगे. मेरी एक बात सदा याद रखना, बुरी संगत से तो अच्छा है की आदमी अकेला ही रहे.”  
पत्नी की यह बात सोमू कभी न भूला.
© आइ बी अरोड़ा 

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