Sunday 20 July 2014

मूर्ख की दोस्ती

काली दास एक अच्छा कारीगर था. वो टायरों के पंकचर ठीक किया करता था. पर वो था एक चोर. सिर्फ बलबीर यह बात जानता था. बलबीर राज सेठ के कारखाने में मज़दूरी करता था. लेकिन काली दास की भांति वो भी एक चोर ही था.  दोनों मिलकर चोरियां करते थे. काली दास बहुत चालाक था और चोरी करने की हर योजना वही बनाता था. वो कभी भी कोई सुराग पीछे छोड़ कर न जाते थे. इस कारण वो कभी पकड़े न गये थे.
एक शाम बलबीर ने काली दास से कहा, “कल सुबह राज सेठ बैंक से दस लाख रुपये निकालेगा.”
“तुम्हें कैसे पता चला?” काली दास ने पूछा
“आज मैं सेठ के केबिन में कुछ काम कर रहा था. तभी सेठ को फोन पर किसी से बात करते सुना था.”
“अगर ऐसा है तो कल हम उसे लूट लेंगे,” कालिदास ने मुस्कराते हुए कहा.  
अगले दिन दोनों ने साधुओं का भेष बनाया और बैंक के निकट राज सेठ की प्रतीक्षा करने लगे. लगभग दस बजे सेठ आया. बैंक के निकट उसे कार खड़ी करने के लिए जगह न मिली. बैंक के सामने “सपना प्लाज़ा” था. सेठ ने प्लाजा की अंडरग्राउंड पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर दी. उसके बैंक में जाते ही काली दास और बलबीर प्लाज़ा की पार्किंग में आ गये. पार्किंग लगभग खाली थी. वहां काम करने वाले सब लोग भी न आये थे.
काली दास ने सेठ की कार के एक टायर से हवा निकाल थी. फिर दोनों वहां छिप कर सेठ की प्रतीक्षा करने लगे. कुछ समय बाद राज सेठ आया. रुपयों से भरा बैग उसने कार की सीट पर रख दिया. तब उसने देखा कि कार का एक टायर पिचका हुआ है.
“यह क्या हुआ? अब टायर बदलना पड़ेगा.” उसने अपने आप से कहा.
वो टायर बदलने लगा. लेकिन वो एक भूल कर बैठा. कार के दरवाज़े उसने ठीक से बंद न किये. काली दास चालाकी के साथ आगे आया. उसने धीरे से कार का दरवाज़ा खोला और बैग निकाल कर बलबीर को पकड़ा दिया. सेठ को पता ही न चला.
बलबीर बैग लेकर वहां से खिसक गया. तब काली दास ने सेठ से कहा “क्या बात है? क्या टायर पंक्चर हो गया है?”
एक साधु को देख कर सेठ चौंक पड़ा. “तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो?”
“घबराइये नहीं, मैं तो बस एक साधु हूँ. परन्तु मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ. साधु बनने से पहले मैं टायरों के पंक्चर ठीक किया करता था.”
राज सेठ को कार का टायर बदलना आता न था. बोला, “ कार का टायर बदलना है. ज़रा मदद करदो.”
काली दास झटपट टायर बदलने लगा. उसने सेठ को बातों में भी लगाये रखा. राज सेठ ने ध्यान ही न दिया कि रुपयों से भरा उसका बैग गायब है. टायर बदल कर काली दास वहां से चल दिया. सेठ ने पुकार कर कहा, “अरे भाई, पैसे तो लेते जाओ.”
“मैं साधु हूँ, मजदूर नहीं.” काली दास ने अकड़ कर कहा.
“मैं मज़दूरी नहीं, दक्षिणा समझ कर ले लो.” इतना कह सेठ ने उसे पचास रूपये का नोट दिया और कार में जा बैठा. तब उसने देखा कि कार में रखा उसका बैग नहीं है. वो चिल्लाया, “मेरा बैग नहीं है. किसी ने मेरा बैग चुरा लिया.”
“यहाँ मेरे सिवाय कोई नहीं है. अगर मुझ पर संदेह है तो मेरी तलाशी ले लो.” काली दास ने भोलेपन से कहा.
“मैं अभी तलाशी लूंगा.” राज सेठ ने बाहर खड़े गार्ड को भीतर बुलाया. दोनों ने काली दास की तलाशी ली परन्तु पचास रुपए के नोट के अतिरिक्त कुछ न मिला.

“एक साधु पर शक करते हो, अच्छी बात नहीं है. मैंने तुम्हारी सहायता की और तुम मुझे ही चोर समझ रहे हो. अच्छी बात नहीं है.” इस तरह बढ़बढ़ाते हुए काली दास वहां से चल दिया. मन ही मन वो बहुत प्रसन्न था. राज सेठ को चकमा देने में वो दोनों पुरी तरह सफल हुए थे. वो जानता था कि अब तक बलबीर ने चुराये हुए रूपए छिपा दिए होंगे और सेठ का बैग भी ठिकाने लगा दिया होगा.
राज सेठ ने पुलिस स्टेशन जाकर चोरी की रिपोर्ट लिखाई. इंस्पेक्टर रंजीत ड्यूटी पर था. उसने पूछा, “वो साधु पार्किंग में क्या कर रहा था?”
“मुझे क्या पता? आप जांच करो ओर पता लगाओ.” सेठ ने झल्ला कर कहा.
“आपने उसकी तलाशी तो ठीक से ली थी न?” इंस्पेक्टर ने पूछा.
“तलाशी तो ठीक से ही ली थी, पर कुछ मिला नहीं,” सेठ ने कहा.
इंस्पेक्टर ने खूब छानबीन की परन्तु चोरों का कोई सुराग उसे न मिला. उसने पार्किंग के गार्ड से भी पूछताछ की. गार्ड ने कहा, “ साहब, दो साधु पार्किंग के भीतर गये थे.”
“परन्तु सेठ जी ने तो बस एक साधु को देखा था.”
“नहीं साहब, मैंने दो साधु देखे थे.”
“वो पार्किंग के अंदर क्यों गये?”   
“साहब, मैंने उनसे पूछा नहीं.”
“तुम्हारी लापरवाही के कारण ही वो दोनों चोरी कर पाए.” इंस्पेक्टर ने गुस्से से कहा.
उधर काली दास और बलबीर बहुत प्रसन्न थे. एक बार फिर दोनों ने बड़ी चालाकी के साथ चोरी की थी और कोई सुराग न छोड़ा था. दोनों को पूरा विश्वास था की पुलिस उन्हें कभी पकड़ न पायेगी. इस बार उन्होंने हाथ भी अच्छा मारा था, पूरे दस लाख चुराये थे. दोनों ने पाँच-पाँच लाख बांट लिए. काली दास ने बलबीर से कहा, “अभी इन पैसों को खर्च न करना. अभी पुलिस जांच पड़ताल कर रही होगी. थोड़े दिनों में जांच बंद हो जायेगी. फिर मौज मस्ती करना.”
परन्तु बलबीर थोड़ा मूर्ख व् घमंडी था. उसे लगा कि काली दास व्यर्थ की चिंता करता रहता है. उसने मन ही मन कहा, “जब हमने कोई सुराग छोड़ा ही नहीं तो पुलिस हमें कैसे पकड़ पायेगी?”
अगले दिन पचास हजार रुपयों का एक बंडल जेब में डाल कर वो कारखाने आया. लंच टाइम में उसने अपने दोस्तों से कहा, “आज मैं कैंटीन में सब को लंच खिलाऊँगा.”
उसके दोस्त खुशी से उछल पड़े. एक दोस्त ने कहा, “लगता है आज फिर चाचा ने गाँव से पैसे भेजे हैं.”
बलबीर हर बार चोरी करने के बाद अपने दोस्तों के साथ खूब मौज मस्ती करता था. अपने दोस्तों को उसने कह रखा था की गाँव में उसकी थोड़ी सी ज़मीन थी जो उसने अपने चाचा को खेती के लिए दी रखी थी. उसी खेती के पैसे चाचा कभी-कभी भेज देते थे. उन्हीं पैसों से वो थोड़ी बहुत मौज मस्ती कर लेता था.
सब दोस्त उसके झूठ को सच मानते थे. वो सब बलबीर को पसंद करते थे. मुफ्त की मौज मस्ती सबको अच्छी लगती थी. इस बार बलबीर कुछ ज़्यादा ही खुश लग रहा था. उसने दोस्तों से कहा, “आज जो मन करे वही खाओ और जितना मन करे उतना खाओ.”
उसकी बात सुन कर कैंटीन मैनेजर ने कहा, “बलबीर, पैसे हैं या आज उधारी पर सबको खिलाओगे?”
बलबीर को मैनेजर की बात अच्छी न लगी. उसने नोटों का बंडल दिखाते हुए कहा, “मैनेजर साहब, बहुत पैसे हैं, अब तो हर दिन दावत होगी.”
मैनेजर को विश्वास न हुआ. उसने सोचा भी न था कि बलबीर के पास इतने रूपए होंगे. उसे कुछ संदेह हुआ. उसने यह बात कारखाने के मालिक राज सेठ को बताई. राज सेठ ने मन ही मन कहा, “ज़रूर कुछ गड़बड़, एक मजदूर के पास इतने रूपए कहाँ से आये,”
सेठ ने तुरंत इंस्पेक्टर को फोन कर सारी बात बताई. इंस्पेक्टर ने उसी समय बलबीर के घर की तलाशी ली. वहां उसे चार लाख पचास हज़ार रूपए मिले जो उसने चावलों के डिब्बे में छिपा कर रखे हुए थे. साधु का पहनावा भी मिला. उसने बलबीर को गिरफ्तार कर लिया.
“तुम्हारे साथ दूसरा कौन था?” इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज़ में पूछा.
“मेरे साथ कोई नहीं था,” बलबीर ने कहा. वो काली दास का नाम न बताना नहीं चाहता था. वो जानता था की अगर काली दास पकड़ा गया तो वो उसका दुश्मन बन जायेगा और कभी न कभी उससे बदला लेगा. बलबीर काली दास से डरता था.
“इसके साथ काली दास होगा. यह अकसर उसकी दुकान पर आया-जाया करता है.” कैंटीन मैनेजर ने इंस्पेक्टर के कान में कहा.    
इंस्पेक्टर ने काली दास को भी गिरफ्तार कर लिया. उसने पाँच लाख रूपए अपनी दुकान में छिपा कर रखे हुए थे. वो समझ गया था कि बलबीर की मूर्खता के कारण ही वो पकड़े गये थे. बलबीर को देख कर उसकी आँखे गुस्से से लाल हो गईं
उसने मन ही मन कहा, “मूर्ख आदमी के साथ कभी दोस्ती नहीं करनी चाहिए. ऎसी दोस्ती से कभी भला नहीं हो सकता.” 

© आई बी अरोड़ा   

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