Saturday 7 June 2014

वनराज की मनमानी



जंगल का राजा हुआ बूढ़ा
पर था वह थोड़ा उदास
पुत्र उसके थे सभी आढ़े तिरछे
किस पर करता वह विश्वास

एक दिन हाथी से वह बोला
“मैं तो कुछ समझ न पाऊँ
पुत्र मेरे हैं सभी निकम्मे
 जंगल का राजा किसे बनाऊं”

सोच में पड़ गया हाथी बेचारा 
प्रश्न किया था राजा ने टेढ़ा
 पुत्र थे शेर के सभी उच्चके
एक से बढ़ कर एक था टेढ़ा

पर हाथी भी था खूब चालाक
किया उसने खूब सोच विचार
सोच समझ कर फिर वह बोला,
“राजन क्यों न करें हम नया व्यवहार

प्रजा से पूछें प्रजा से जाने
प्रजा की इच्छा ही हम माने
जिस को चुने प्रजा हमारी  
उसे ही अपना राजा माने”

बूढ़े शेर का माथा ठनका
हाथी की चतुराई वह समझा
जंगल में अगर हुआ चुनाव
तो फिर आयेंगे कई बदलाव

   हर वन में था यही झमेला   
आम पशु कर रहे थे हल्ला
सब की थी बस एक ही मांग
चुनाव करो या छोड़ो पल्ला

शेर ने हाथी की एक न मानी
उसने सदा की थी मन की मानी
पुत्र जो था उसका सबसे पाजी
उसे ही सिंहासन देने की ठानी .

 © आई बी अरोड़ा 

4 comments:

  1. Sir, had the privilege of working under you for a short period, but never knew about this facet of your genius mind. All the best. Regards - Sunil Kumar.

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  2. बाल-कविता के माध्यम से सम-सामयिक समस्या पर कटाक्ष करती रचना.

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